शिमला। हमारे देश में विभिन्न तरह की मान्यताओं और परम्पराओं को मानने वाले लोग रहते है। कुछ मान्यताएं तो ऐसी हैं जिन्हें निभाना जान जोखिम में डालने जैसा है।बावजूद इसके ऐसी मान्यताएं मानी जा रही हैं। जिसमे से एक है पत्थरों का ऐसा अजीब खेल, जिसमे तब तक पत्थरों की बारिश नहीं रुकती जब तक खून की धारा बहने न लगे।
दरअसल, शिमला शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर धामी के हलोग में पत्थरों का एक ऐसा मेला होता है, जिसे देखकर हर कोई दंग रह जाता है। वर्षों से ये परंपरा दीवाली के दूसरे दिन होती है। पत्थरों का ये मेला दीपावली के दो दिन बाद खेला जाता है। इस मेले में हजारों की संख्या में लोग हलोग धामी के खेल चौरा मैदान में एकत्रित होते हैं। मेले में दोनों तरफ से पत्थर बरसाने का सिलसिला शुरू होता है।इस बार भी दोनों ओर से लगातार छोटे और बड़े पत्थर लगातार बरसाए गए।
इस बीच जमोगी के खूंद हितेश को पत्थर लग गया। उससे खून निकलने लगा। करीब 15 मिनट तक चले इस पत्थरबाजी का सिलसिला यहीं थम गया। मेला कमेटी के आयोजकों के साथ राजवंश के सदस्यों ने मेला स्थल के नजदीक बने काली माता मंदिर में जाकर पूजा अर्चना की। माता को खून का तिलक लगाया गया। मेले में युवा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह ने भी शिरकत की।
मेले में कहीं किसी को चोट लगे, ये नहीं सोचा जाता है, बल्कि मेले में शामिल लोग पत्थर लगने से खून निकले, इसे सौभाग्य समझते हैं। इसलिए लोग मेले में पीछे रहने की बजाय आगे बढ़कर दूसरी तरफ के लोगों पर पत्थर फेंकने के लिए जुटे रहते हैं। धामी के पत्थर मेले को देखने के लिए धामी, घणाहट्टी, दाडग़ी, पाहल, डगोई तुनड़ी ही नहीं बल्कि शिमला से भी पहुंचे। मेले के लिए धामी के लोग खासतौर पर अपने घरों से पहुंचते हैं। पुराने समय में हर घर से एक व्यक्ति को मेले के लिए पहुंचना होता था। अब हालांकि इसकी बाध्यता नहीं है, इसके बावजूद हजारों लोग यहां आते हैं।
नियमों के मुताबिक एक ओर राज परिवार की तरफ से जठोली, तुनड़ू और धगोई और कटेड़ू खानदान की टोली और दूसरी तरफ से जमोगी खानदान की टोली के सदस्य ही पत्थर बरसाने के मेले भाग ले सकते हैं। बाकी लोग पत्थर मेले को देख सकते हैं, लेकिन वह पत्थर नहीं मार सकते हैं। खेल का चौराज् गांव में बने सती स्मारक के एक तरफ से जमोगी दूसरी तरफ से कटेडू समुदाय पथराव करता है। मेले की शुरुआत राजपरिवार के नर सिंह के पूजन के साथ होती है।
धीमी के हलोग में आयोजित पत्थर मेले में एक-दूसरे को पत्थर मारते लोग। एक बार रानी यहां सती हो गई। इसके बाद से नर बलि को बंद कर दिया। इसके बाद पशु बलि शुरू हुई। कई दशक पहले इसे भी बंद कर दिया। इसके बाद पत्थर का मेला शुरू किया गया। मेले में पत्थर से लगी चोट के बाद जब किसी व्यक्ति का खून निकलता है तो उसका तिलक मंदिर में लगाया जाता है। हर साल दिवाली से अगले दिन ही इस मेले का आयोजन धामी के हलोग में किया जाता है।