फल-फूल रहा जड़ी-बूटी का काला कारोबार

ललितपुर| प्रकृति ने मनुष्य की सेहत संवारने के लिए बहुत कुछ दिए हैं। जंगली क्षेत्रों से जड़ी-बूटी के रूप में मिलने वाले बेशकीमती खजाने की परख न होने के कारण सहरिया समुदाय आज भी घास की रोटियां खाकर जीवन यापन कर रहे हैं, जबकि इन्हीं से जड़ी-बूटी खरीदकर कुछ लोग काला कारोबार कर मालामाल हो रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में अकूत प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ जीवन प्रदान करने वाली जड़ी-बूटियों का भंडार भरा पड़ा है। इस भंडार के जरिए ही सुदूर ग्रामीण अंचलों के जंगली क्षेत्रों में निवास करने वाले सहरिया समुदाय के लोग जीवन यापन कर रहे हैं, लेकिन कमाई उतनी नहीं हो रही जिससे उनका जीवन संवर सके।

जीवन प्रदान करने वाली जड़ी-बूटियों को एकत्र कर बेचने के बावजूद आज तक सहरिया समुदाय के लोग विकास की मुख्यधारा से नहीं जुड़ सके हैं। वे खस्ताहाल में हैं, जबकि उन्हीं से सस्ते में जड़ी-बूटी खरीदकर ऊंचे दामों पर बेचने वाले करोड़ों कमा रहे हैं।

उप्र का ललितपुर जिला मध्य प्रदेश की सीमाओं से घिरा हुआ बुंदेलखंड का सबसे पिछड़ा जनपद का गौरव हासिल किए हुए है। इस जनपद में विकास के नाम पर यदि बड़े उद्योगों की बात करें तो सूबे का सबसे बड़ा पावर प्रोजेक्ट बजाज कंपनी द्वारा ग्राम चिगलौआ में लगाया गया है। इस तरह कई उद्योग और लगने के आसार भी बढ़ गए हैं।

वहीं, सीमावर्ती ग्रामीण अंचलों में लखन्जर पापड़ा जैसे दूरस्थ ग्रामीण अंचलों में प्राकृतिक सौंदर्यता अकूत है। यहां कई वर्षो पुराने पेड़-पौधों से जीवन प्रदान करने वाली जड़ी बूटियां मिलती हैं। बेशकीमती इन जड़ी बूटियों को बीन कर सहरिया समुदाय के लोग यहां घास की रोटियां खाकर अपना जीवन यापन करते हैं। उधर बिचौलिए व्यापक पैमाने पर जड़ी-बूटियां सस्ते में खरीदकर मुख्यालय स्थित कुछ दुकानों पर व्यापारियों के हाथों मनमाने दामों पर बेच रहे हैं। इतना ही नहीं, वे बाहरी जनपदों में इसका व्यापार धड़ल्ले से कर रहे हैं।

इधर विडंबना देखिए कि सहरिया समुदाय का विकास रुका हुआ है। उनके पास आय के और साधन भी नहीं हैं। पूर्व मंडल आयुक्त (झांसी) सत्यजीत ठाकुर ने ललितपुर जिले के सहरिया आदिवासियों को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए ठोस कदम उठाए भी थे, लेकिन उनके सेवानिवृत्त होने पर सहरिया समुदाय फिर से उसी स्थान पर पहुंच गया है।

जड़ी-बूटियों के लिए प्रसिद्ध ललितपुर जनपद के ग्राम डोंगरा, पटना (बिहार की राजधानी नहीं), पारौल, गौना, बालाबेहट, महोली, मड़ावरा, मदनपुर, सौंरई इत्यादि क्षेत्रों से सहरिया समुदाय के लोग व्यापक पैमाने पर जड़ी-बूटियां मुख्यालय लाते हैं। मुख्यालय पर कुछेक दुकानदार अपने मनमाने दामों पर जड़ी बूटियों को खरीद कर ऊंचे दामों पर बाहरी जिलों के व्यापारियों को बेच देते हैं।

जड़ी-बूटी का ललितपुर जिले में कितना उत्पादन है, कितनी आपूर्ति है, कितने दामों पर आती है और कितने में बेची जा रही है, इसकी जानकारी वन विभाग के अधिकारियों को नहीं है। सूत्र बताते हैं कि आजादी के बाद से बेशकीमती जड़ी-बूटी की आवक का कोई हिसाब-किताब ही नहीं है। ऐसे में फुटकर व्यापारी विभागीय अधिकारियों की सांठगांठ के चलते चंद रुपयों की जड़ी-बूटियों को खरीदकर लाखों के वारे-न्यारे कर रहे हैं।

जड़ी-बूटी की आवक व विक्रय को लेकर जब एक व्यापारी शिवराम सरावगी से पूछा गया तो उसका स्पष्ट कहना था कि आवक का तो पता नहीं, मगर रोजाना कुछ लोग जड़ी-बूटियां बेच जाते हैं। उनसे खरीदकर इस धंधे में लगे उसके कारिंदे दिल्ली, इंदौर, मुंबई, झांसी, ग्वालियर व भोपाल जैसे महानगरों में ये जड़ी-बूटियां ऊंचे दामों में बेच देते हैं।

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