सुपौल (बिहार)। बिहार का शोक कोसी नदी के घटते-बढ़ते जलस्तर और सरकारी असहयोग और जनप्रतिनिधियों की बेरुखी के बीच सुपौल की राजनीतिक धमक तो राज्य से लेकर देश स्तर तक रही है, लेकिन अत्यंत विषम परिस्थितियों में जी रहे बांध से बंधे गांवों के लोगों की ओर किसी का ध्यान नहीं। हां, चुनावी शोर यहां भी पुरजोर है। बिहार विधानसभा चुनाव में एक बार फिर नेता ग्रामीणों को सब्जबाग दिखाकर वोट पाने की जुगत में हैं।
सत्ताधारी गठबंधन जहां एक बार फिर ढाई दशक से इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले नीतीश सरकार के मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव पर दांव लगाया है, वहीं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के किशोर कुमार को प्रत्याशी बनाकर नए समीकरण के भरोसे यह सीट झटकने के प्रयास में है।
बिहार सरकार के मंत्री विजेंद्र 1990 से ही लगातार विधायक रहे हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने ने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के रवींद्र कुमार रमण को 15 हजार से ज्यादा मतों से हराया था। मगर इस चुनाव में परिस्थितियां बदली हैं। पिछले चुनाव में जेडीयू और बीजेपी का गठबंधन था, लेकिन इस चुनाव में दोनों दल आमने-सामने हैं। यहां बहुजन समाज पार्टी और वाम मोर्चा के प्रत्याशी समेत कुल नौ प्रत्याशी मैदान में हैं। बदला हुआ समीकरण हालांकि महागठबंधन के पक्ष में नजर आ रहा है, लेकिन विजेंद्र की परेशानी भी बढ़ी नजर आ रही है, क्योंकि यहां के मतदाता स्थानीय समस्याओं को लेकर ज्यादा मुखर हैं।
सुपौल में महावीर चौक के पास सार्वजनिक पुस्तकालय परिसर में दूध विक्रेता भुवनेश्वर यादव कहते हैं कि हमारे मरौना प्रखंड को कोसी विभाजित करती है। तटबंध के अंदर बैरिया से मरौना तक सड़क निर्माण की घोषणा तो की गई, लेकिन न सड़क बनी न पुल बना। आज भी लोगों को नाव से नदी पार करनी पड़ती है। अगर नदी पार न करें तो 70 किलोमीटर का लंबा सफर तय करना पड़ता है।
जातीय ध्रुवीकरण की बात छेड़ने पर यादव बेबाक कहते हैं कि यह सच है कि बिहार में जाति के आधार पर वोट तो डाले जाते हैं, लेकिन यह उचित नहीं है। विकास पर मत डालना चाहिए। वहीं, सुपौल के बी एस एस कॉलेज के सेवानिवृत्त प्रोफेसर नर्मदा प्रसाद सिंह कहते हैं कि पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बार स्थिति बदली हुई है। जेडीयू, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के एक साथ हो जाने से सत्ताधारी महागठबंधन मजबूत स्थिति में है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हर जाति के युवा प्रभावित दिख रहे हैं।
प्रो. सिंह ने कहा कि इस विधानसभा क्षेत्र में 19 फीसदी दलित मतदाता हैं जो पिछली बार जेडीयू के साथ थे, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की बगावत के कारण इस बार वे पलटी मार सकते हैं। ऐसे में एनडीए को भी कमजोर नहीं माना जा सकता। सिंह कहते हैं इस चुनाव में मुख्य मुकाबला दोनों गठबंधनों के बीच माना जा रहा है।
इधर, सुपौल के कर्णपुर पंचायत के अखिलेश पाठक कहते हैं कि सुपौल में आज तक उच्चस्तरीय शिक्षण संस्थान की स्थापना नहीं हुई। यहां के छात्रों को बेहतर शिक्षा के लिए बाहर जाना पड़ता है। सुपौल के वरिष्ठ पत्रकार संतोष चौहान कहते हैं कि मुख्य मुकाबला दोनों गठबंधनों के बीच है, लेकिन 45 हजार मुस्लिम मतदाताओं वाले इस विधानसभा क्षेत्र से बीएसपी के जियाउर रहमान मुकाबले को त्रिकोणात्मक बनाने की कोशिश कर रहे हैं। वैसे उन्होंने यह भी कहा कि निर्वतमान विधायक के लिए समस्या और युवाओं को जाति व धर्म की जद से निकलना भारी पड़ सकता है।
इधर, मरौना के अरविंद मेहता विकास न होने की बात को नकारते हुए कहते हैं कि सुपौल में बिजली की स्थिति में सुधार हुआ है। जिला मुख्यालय में पावर ग्रिड की स्थापना हुई, जिससे विद्युत आपूर्ति में सुधार हुआ। आधारभूत संरचना का विकास हुआ है। हां, यह जरूर है कि अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
बहरहाल, कोसी के कटाव की विभीषिका झेल रहे सुपौल विधानसभा क्षेत्र के युवा मतदाता इस चुनाव में जाति और धर्म आधारित राजनीति से ऊपर उठकर वोट देने की बात भले ही कर रहे हों, लेकिन यह तय है कि मुकाबला दोनों गठबंधनों के बीच है। इस क्षेत्र का ढाई दशक से प्रतिनिधित्व करने वाले विजेंद्र को यहां के मतदाता फिर विजयी बनाते हैं या उनके विजय रथ को एनडीए रोक पाता है, यह आठ नवंबर को मतगणना के दिन ही पता चल सकेगा।