बिहार चुनाव : जाति संघर्ष के इतिहास के बीच धमदाहा में त्रिकोणीय मुकाबला

पटना | बिहार के विभिन्न जिलों में हुए जाति संघर्ष से पूर्णिया भी अछूता नहीं रहा। वर्ष 1990 के दशक और उसके बाद हुए जाति संघर्ष की भेंट चढ़े अपने पिता और दादा की हत्याओं को याद करते हुए धमदाहा के हल्दीबारी गांव के शंभु भगत (48) बेहद भावुक हो जाते हैं। साल 2000 में अपने पिता गंगा प्रसाद भगत की हत्या के बाद उन्होंने अपनी पत्नी व दो बेटों के साथ गांव से नाता तोड़ लिया और पूर्णिया जिले के बनमनखी के जानकीनगर में जा बसे, जहां वह हार्डवेयर की एक छोटी सी दुकान चलाते हैं।

शंभु ने कहा, “मेरे पास 5.5 बीघा खेती योग्य भूमि थी, जिससे हमारी रोजी-रोटी चलती थी। लेकिन जाति संघर्ष में वह भी छिन गई। बीते 15 सालों से मैं मुकदमा लड़ रहा हूं, जिसका अभी तक कोई परिणाम नहीं निकला। अपने बाल-बच्चों की जिंदगी के लिए मैंने जानकीनगर में बसने का फैसला किया।”

गांव छोड़ने वालों में शंभु अकेले नहीं हैं। धमदाहा में ऐसे हजारों शंभु हैं, जिनके लिए चुनाव कोई मुद्दा नहीं है। धमदाहा प्रतिष्ठा की सीट बन गई है। इस सीट से नीतीश सरकार में समाज कल्याण मंत्री रहीं लेशी सिंह (41) चुनाव मैदान में हैं और तीसरी बार विधायकी के लिए वोट मांग रही हैं। वह बूटन सिंह की पत्नी हैं, जिन्होंने नॉर्थ लिबरेशन आर्मी नाम से राजपूत नागरिक सेना का गठन किया था। बाद में जाति संघर्ष में उनकी हत्या हो गई।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की तरफ से राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के उम्मीदवार शिव शंकर ठाकुर (60) चुनाव मैदान में हैं। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पूर्व विधायक दिलीप कुमार यादव (52) पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी के टिकट पर किस्मत आजमा रहे हैं, जिसके कारण इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।

महागठबंधन में सीटों के बंटवारे में धमदाहा सीट जनता दल (युनाइटेड) के खाते में चली गई, जिससे दिलीप कुमार यादव नाराज हो गए। साल 1995 में यादव ने जनता दल के टिकट पर पहली बार इस सीट पर जीत दर्ज की थी। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी निर्दलीय उम्मीदवार मधुसूदन सिंह को पटखनी दी थी। अगले चुनाव में उन्हें राजद का टिकट मिला, लेकिन लेशी सिंह के हाथों उनकी हार हुई। साल 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में लेशी सिंह ने कांग्रेस के इर्शाद अहमद खान को हराया और जद (यू) नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री बनीं। मुख्य रूप से खेतिहर इलाका धमदाहा के किसान ठगा सा महसूस करते हैं।

अपनी जमीन बचाने के लिए साल 1968 में सरकारी नौकरी छोड़ने वाले दक्षिण टोला निवासी चुटकुन झा (80) ने कहा, “इस इलाके के किसान बेहद बदहाल हैं, क्योंकि सरकार की तरफ से शायद ही उन्हें कोई मदद मिलती है। अप्रैल में आई भीषण आंधी में हमारी फसलें बर्बाद हो गईं, जिसके मुआवजे का हम अभी तक इंतजार कर रहे हैं।”

वहीं निवासी मोहम्मद ताहिर ने कहा, “हमारी सुनने वाला कोई नहीं है। चुनाव है इसलिए हर कोई आ रहा है, लेकिन जीत के बाद कोई यहां धन्यवाद कहने भी नहीं आता।” उन्होंने कहा कि वे राजनीतिज्ञों से तंग आ चुके हैं। एक अन्य किसान राम नारायण मंडल के मुताबिक, “चुनाव के दौरान धमदाहा में केवल जाति व पैसे की तूती बोलती है।” धमदाहा की आबादी 2.8 लाख है, जिसमें यादव, ब्राह्मन व मुसलमानों की मिश्रित आबादी है।

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