रांची। आरएसएस ने जनसंख्या असंतुलन को भविष्य के लिए खतरनाक बताते हुए सबके लिए परिवार नियोजन नीति बनाने की की बात कही है। संघ की राष्ट्रीय कार्यकारी मंडल की बैठक में जनसंख्या नीति पर तैयार प्रस्ताव पारित हुआ।
देश में भारतीय मूल के धर्म को मानने वाले लोगों की घटती जनसंख्या पर चिंता व्यक्त करते हुए आरएसएस कार्यकारी मंडल की बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया।देश में नई जनसंख्या नीति की सबको जरूरत है।
यह नीति सब पर समान रूप से लागू किया जाये। केंद्र सरकार सीमा पार से हो रही अवैध घुसपैठ पर पूर्ण रूप से अंकुश लगाए। देश में एक राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की जरूरत है।
रांची के निकट सरला बिरला पब्लिक स्कूल में चल रही संघ के अखिल भारतीय राष्ट्रीय कार्यमंडल की दूसरे दिन के बैठक में सर्वसम्मति से जनसंख्या वृद्धि दर में असंतुलन की चुनौती विषय पर सांगोपांग चर्चा के बाद यह प्रस्ताव पारित किया गया।
प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान संघ ने चिंता जतायी है कि देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए किए गए विविध उपायों से पिछले दशक में जनसंख्या वृद्धि दर में पर्याप्त कमी आयी है। संघ के सह सरकार्यवाह डॉ कृष्ण गोपालजी ने पारित प्रस्ताव का हवाला देते हुए प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि 2011 की जनगणना के धार्मिक आधार पर किए गए विश्लेषण से विविध संप्रदायों की जनसंख्या के अनुपात में जो परिवर्तन आया है, उसे देखते हुए संघ का मानना है कि जनसंख्या नीति पर पुनर्विचार की जरूरत है।
संघ के सर सह कार्यवाह ने कहा कि विविध संप्रदायों की जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अंतर, अनवरत विदेशी घुसपैठ व धमांर्तरण के कारण देश की संपूर्ण जनसंख्या विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों की जनसंख्या के अनुपात में बढ़ असंतुलन देश की एकता, अखंडता और सांस्कृतिक पहचान के लिए गंभीर संकट बन सकता है।
उन्होंने बताया कि वर्ष 1951 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अंतर के कारण देश की जनसंख्या में जहां हिन्दू धर्मावलंबियों का अनुपात 88 प्रतिशत से घटकर 83.8 प्रतिशत रह गया है। यानी पांच फीसदी आबादी घटी है।
वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 9.8 प्रतिशत से बढ़कर 14.23 प्रतिशत हो गया है अर्थात आबादी में पांच फीसदी बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा देश के सीमावर्ती रायों असम, पश्चिम बंगाल और बिहार के सीमावर्ती जिलों में तो मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है।