उमेश कुमार
लखनऊ। खोयी ताकत हासिल करने के लिए कांग्रेस में गजब की छटपटाहट है। इसे लेकर वह तरह तरह के प्रयोग कर रही है। राज बब्बर सहित चार प्रमुख नेताओं को संगठन में अहम जिम्मेदारी देने के बाद कांग्रेस अब यहां के सीएम कंडीडेट के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नाम पर सहमति बन गयी है। जिसका ऐलान जल्द किया जा सकता है।
यूपी कांग्रेस के चुनाव प्रबंधन का काम देख रहे प्रशात किशोर की निगाहें मुस्लिमों के साथ सर्वणो पर लगी है। सर्वणों में भी करीब 11 प्रतिशत आबादी वाले ब्राम्हण समाज पर। इसके लिए कांग्रेस के पास शीला दीक्षित से बडा चेहरा नहीं है।
इनके नाम को लेकर प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद और राज बब्बर के बीच दिल्ली में मीटिंग चल रही है। सूत्रों के अनुसार इस बैठक में शीला के नाम पर लगभग सहमति बन गयी है। इसके पीछे उन्हें प्रदेश के 11 फीसदी ब्राहमणों को लुभाने के लिए दमदार चेहरा बताया जा रहा है। वो यूपी की राजनीतिक गतिविधियों से भली भाति परिचित भी है।
शीला दीक्षित राजनीति में एक बड़ा नाम हैं और यूपी के ही उन्नाव जनपद में उनकी ससुराल भी है। वह 1984 से लेकर 1989 तक यूपी के कन्नौज सीट से सांसद भी रही हैं। यूपी में ब्राह्मण वोट बैंक अच्छा खासा है। अगर यह वोट बैंक पुनः पार्टी के पास लौट आया तो सीटों की संख्या बढाने में आसानी होगी।
वर्तमान में यूपी की राजनीति में ब्राम्हणो का कोई सर्वमान्य नेता नहीं है। इसका लाभ भी शीला दीक्षित को मिल सकता है। अगर राजनैतिक हैसियत की बात करें तो शीला दीक्षित लगातार 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री रही। यूपी में ऐसा कोई नेता नहीं है जो लगातार 15 साल तक यूपी में राज किया हो।