जब सीएम कंडीडेट घोशित किया तब मिली हार
पार्टी की निगाहें संघ के सम्मेलन पर
लखनऊ। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेष में पुनः सत्ता संभालने के लिए बेताब भाजपा को यूपी में मुख्यमंत्री प्रत्याषी का चेहरा नहीं षूट करता। पार्टी ने पूर्व में यहां जब जब चेहरा पेश किया तब तब भाजपा को हार का स्वाद चखना पडा। इसीलिए मिशन 2017 में सीएम के चेहरे को लेकर भाजपा अभी असमंजश में है। बहरहाल इन दिनों कानपुर के बिठूर में संघ का सम्मेलन चल रहा है जिसमें इस विशय पर कुछ हल निकलने की उम्मीद जतायी जा रही है।
भाजपा के नव निर्वाचित प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या ने अपने स्वागत समारोह में ही पार्टी कार्यकर्ताओं के समक्ष 265 प्लस का पहाड जैसा लक्ष्य तय कर दिया। इतनी सीटे तो भाजपा राम मंदिर आंदोलन में भी हासिल नहीं कर पायी। वहीं इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भाजपा एक चेहरा उतारने को लेकर असमंजस में है। पार्टी ने चुनावी तैयारियां भले ही तेज कर दी हो लेकिन चेहरा घोशित करना है या नहीं यह अब तक तय नहीं कर पायी है। इन दिनों संघ की एक अहम बैठक कानपुर के बिठूर में हो रही है। इसमें चेहरे को लेकर हल निकलने की उम्मीद भाजपा जता रही है।
वहीं भाजपा ने जब भी यहां सीएम का चेहरा पेष किया तब पार्टी को हार का ही सामना करना पडा। वर्श 2012 में भाजपा ने केन्द्रीय मंत्री उमा भारती एवं कलराज मिश्र को अघोशित सीएम चेहरा पेष किया लेकिन भाजपा विधायकों की संख्या घटकर 51 से 47 हो गयी। इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का चेहरा 2007 में पेष किया तो विधायकों की संख्या 88 से 51 हो गया। 2002 में भी राजनाथ सिंह का चेहरा कोई खास करतब नहीं दिखा पाया। इस दौरान भी विधायकों की संख्या घटकर 174 से 88 हो गयी।
इसी तरह 1996 एवं 1974 में भी भाजपा ने क्रमषः कल्याण सिंह और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का चेहरा सीएम के रूप में पेंष किया लेकिन हार का सामना करना पडा। वहीं 1991 में राम मंदिर के आंदोलन के दौरान भाजपा ने किसी को भी चेहरा नहीं उतारा था उस दौरान भाजपा को बढृत मिली। इसीलिए भाजपा का एक घटक पीएम मोदी के चेहरे को ही पेश कर यूपी की लडाई लडना चाहता है। लेकिन दूसरा पक्ष चाहता है कि बिना चेहरे के पार्टी को सफलता नहीं मिलेगी। क्योंकि सपा, बसपा का चेहरा सामने है।