राजेश सिंह
लखनऊ। विरोधी दलों एवं पार्टी से जा चुके बागियों का चैतरफा हमला झेल रही बहुजन समाज पार्टी एक बार फिर ब्राह्मण और मुसलमानों पर दाव लगाने की तैयारी कर रही है। इन दोनों जातियों को आगामी विधानसभा चुनाव में बडी तादाद में टिकट देने की तैयारी कर रही है। ऐसे में बसपा द्वारा पूर्व में घोषित प्रत्याषियों का बदलाव होेने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
बसपा पूर्व की तरह ब्राह्मण-मुस्लिम गठजोड को धार देना चाहती है।2007 के आम चुनाव में बसपा ने दलितों के साथ ही इन दोनों जातियों को बडे पैमाने पर चुनावी मैदान में उतारा था। इसका लाभ भी पार्टी को मिला मायावती चौथी बार यूपी की मुख्यमंत्री बनी। इस बार भी बसपा पूर्व के अपने प्रयोग को दोहराना चाहती है। क्योंकि बसपा को विष्वास है कि दलित वोट बैंक को उसके साथ है ही। जबकि बसपा के दलित वोट बैंक में भाजपा सेंध लगाने का भरसक प्रयास कर रही है। इसीलिए बसपा इस गैप को भरने के लिए ब्राह्मण और मुसलमानों को अपने साथ जोडना चाहती है।
पार्टी इस बार 100 टिकट मुसलमानों को देने जा रही है। इसके अलावा हर विधानसभा के लिए एक-एक प्रभारी होगा, जिस पर उम्मीदवारों को जीत दिलाने की जिम्मेदारी होगी। यह प्रयोग भी बसपा पहली बार करने जा रही है। ब्राह्मण और मुसलमानों को बसपा को अपने साथ जोडने का कार्य चुनौतीपूर्ण है क्योंकि बसपा के लिए 2007 जैसा माहौल नहीं है। पार्टी के ही विश्वास पात्र नेता पलायन कर रहे है। यह नेता मायावती को ही निशाने पर लेकर हमला कर रहे है। अर्तकलह में उलझी बसपा इस बार भाई चारा एवं ब्राह्मण सम्मेलन भी नहीं कर पा रही है। जबकि 2007 में चुनाव के करीब एक साल पहले बसपा यह आयोजन करती रहती थी।
इसके अलावा बसपा को इस बार सत्ता विरोधी लाभ भी नहीं मिल पा रहा है। क्योंकि भाजपा इस बार बसपा से कहीं अधिक सपा सरकार पर हमलावर है। ऐसे में बसपा को ब्राह्मण और मुसलमानों का लाभ कैसे मिल सकेगा।