दिग्गजों को हासिये पर रखकर नये नेताओं पर भरोसा
यदि प्रियंका ने संभाली कमान बढ सकती मुष्किलें
उमेश कुमार
लखनऊ। कभी भाजपा यह नारा हिट हुआ करता था भाजपा की तीन धरोहर अटल, आडवाणी, मुरली मनोहर। लेकिन भाजपा की कमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों मे आने के बाद पार्टी के सुर ही बदल गए। अब भाजपा में पिछडों एवं दलितों पर ही पूरा जोर दिया जा रहा है। इस वोट बैंक को हथियाने के लिए भाजपा इस वर्ग के नेताओं को तवज्जों दे रही है। ऐसे में सर्वण जाति के नेता ही घुटन महसूश करने लगे है।
भाजपा की कमान मोदी के हाथों में आने के बाद पार्टी में पिछडे एवं दलित जाति के नेताओं को तरजीह मिलने लगी। इसमें भी इस वर्ग के पुराने नेताओं को हाशीये पर कर दिया गया। इसी वर्ग के ही युवा नेताओं को चाहे वह संगठन हो या फिर केन्द्रीय मंत्रिमण्डल हो हर जगह बेहतर मौका दिया जा रहा है। वहीं सर्वण नेताओं को दरकिनार कर दिया गया है। इससे पार्टी के साथ परम्परागत रूप से जुडे ठाकुर ब्राम्हण नेता इन दिनों पार्टी में घुटन महसूष कर रहे है।
यूपी में कुछ माह बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इस चुनाव को लेकर पार्टी का पूरा फोकस पिछडे एवं दलित वोटरों को अपने साथ लाने पर है। इसके लिए वह तरह तरह के प्रयोग कर रही है। जबकि इस वर्ग में करीब आठ प्रतिशत यादव सपा का मजबूत वोट बैंक माना जाता है। इसी तरह करीब दस प्रतिशत दलित वोेट भी बसपा का बेस वोट बैंक है। वहीं भाजपा में पिछडो को तवज्जो देने के लिए प्रदेष अध्यक्ष का पद लक्ष्मी कांत बाजपेयी से लेकर केशव प्रसाद मौर्या को सौंपी गयी है।
इससे सर्वण जातियों का झुकाव भाजपा की ओर कम होता जा रहा है। यह वर्ग भाजपा छोड अन्य दलों में अपना ठिकाना तलाश रहा है। आजादी के बाद सर्वण मतदाता कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक माना जाता रहा है। लेकिन राम मंदिर के आंदोलन में यह मतदाता कांग्रेस से छिटक कर भाजपा में आ गया। लेकिन एक बार फिर वह असमंजस की स्थित में है। ऐसे में यदि कांग्रेस यूपी की कमान पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को सौपता है तो यह वर्ग पुनः कांग्रेस के साथ जा सकता है। इतना ही यदि कांग्रेस का प्रचार करने पूरे प्रदेश में पियंका गांधी उतरी तो सर्वणों के साथ ही मुस्लिम मतदाता कांग्रेस की ओर सपा से पलायन कर सकता है।