न सुधरे तो होगी कानूनी कार्यवाही
महिला प्रधानों को खुद देखनी पडेगी पंचायत
लखनऊ। पंचायतों में महिला प्रधान होने पर अपना हुक्म चला रहे प्रधानपतियों पर शिकंजा कसने की तैयारी की जा रही है। अपने मन माफिक पंचायत में फरमान जारी करने वाले प्रधानपतियों पर अपराधिक मामला दर्ज कर कानूनी कार्यवाही की जा सकती है। ऐसे में महिला ग्राम प्रधानों को धर का चूल्हा चौका छोड पंचायत का कार्य स्वयं करना होगा।
प्रदेश में कुल 59,162 ग्राम पंचायतों में 25,809 महिला ग्राम प्रधान इस बार निर्वाचित हुई है। इनमें अधिकांश या तो अनपढ है या फिर कम पढी लिखी है। जिसके कारण उन्हें अपनी पंचायत के बारे में खास जानकारी नहीं रहती। इन महिला प्रधानों का सारा काम काज उनके घर के ही पति, पिता एवं पुत्र देख रहे है।
यह प्रधानपति बिना प्रधान की सहमति के अपने मन माफिक पंचायतों में फरमान जारी करने के साथ विकास कार्यो को कराते रहते है। इसकी पूरी जानकारी तक निर्वाचित महिला ग्राम प्रधान को नहीं होती। इस मनमानी पर अब शिकंजा कसने की तैयारी हो गयी है।
सूत्रों के अनुसार इस बाबत उच्च न्यायालय ने गत दिनों एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि ग्राम प्रधान का पद कोई पैतृक नहीं होता, जिसे वारिश को स्थानातंरित कर उत्तराधिकार दिया जाए।
इसलिए महिला ग्राम प्रधानों को स्वयं अपना कार्य देखना होगा। यदि इस कार्य में प्रधान के वारिश दखल देते है तो ग्राम प्रधान इसकी शिकायत खण्ड विकास अधिकारी को कर सकती है। जिसकी जांच के उपरांत प्रधानी का मजा उठा रहे प्रधानपतियों के खिलाफ अपराधिक मुकदमा दर्ज कर कानूनी कार्यवाही की जायेगी।
इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने प्रमुख सचिव पंचायती राज को महिला ग्राम प्रधानों से जुड़े अधिकारों का अनुपालन कराने एवं प्रधान पतियों पर शिकंजा कसने के निर्देश दिए हैं। राज्य निर्वाचन आयोग के अपर निर्वाचन आयुक्त जय प्रकाश सिंह ने बताया कि महिला ग्राम प्रधानों के अधिकारों को लेकर उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए इस आदेश के बारे में हमें जानकारी नहीं है।
यदि इस तरह का कोई आदेश हुआ है तो सरकार को उसे गंभीरता से लेकर इसका अनुपालन कराना चाहिए। उन्होंने हमारे समाज में पुरूष प्रधान की संज्ञा को बदलने की आवश्कता है। उन्होंने बताया कि महिला ग्राम प्रधानों का कम पढा लिखा होने के साथ ही उनकी सिधाई का नाजायज फायदा प्रधान पति उठा रहे है। इस बाबत कई शिकायते आयोग के पास भी आज चुकी है।