नई दिल्ली । दुनियां भर में हिंदू धर्म एक ऐसा धर्म है जिसमे लोगो के मरने के बाद उनके मृत शरीर को आग में जला दिया जाता है। मगर भारत के एक राज्य में इसी धर्म के लोगो की लाशे जलाई नहीं बल्कि दफनाई जाती हैं। सुनने वालो को यह बात जरूर अटपटी लग रही होगी मगर यह सच है। बता दें कि यह काम कुछ साल से नहीं बल्कि पिछले 86 सालों से चल रहा है।
यहां मुस्लिमों के साथ साथ हिन्दुओं के लिए भी कब्रिस्तान बनाया गया है। पहले जहां सिर्फ एक कब्रिस्तान हुआ करता था, वहीं आज 7 हिन्दुओं के कब्रिस्तान हैं। उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में चली आ रही है यह अनोखी परंपरा, जहां हिन्दुओं को जलाया नहीं बल्कि दफनाया जाता है। यहां सबसे पहला हिन्दुओं का कब्रिस्तान 1930 में बना था।
बता दें कि इस अजीबो गरीब परंपरा की शुरुआत अंग्रेजों द्वारा की गई थी। इस कब्रिस्तान का नाम अच्युतानंद है। अच्युतानंद दलित समुदाय के एक बड़े रहनुमा थे। एक बार एक दलित बच्चे की मृत्यु के वक़्त अंतिम क्रिया के लिए वहां पहुंचे पंडित बच्चे के परिवार वालो से बड़ी दक्षिणा मांगने लगे जिसके बाद अच्युतानंद और पंडितो के बीच झगडा हो गया।
जिसके बाद अच्युतानंद ने खुद बच्चे के सारे विधि-विधान पूरे किए और उसे गंगा में प्रवाहित कर दिया। फतेहपुर जनपद के सौरिख गांव के स्वामी अच्युतानंद के मन में वह घटना घर कर गई थी जिसके कारण उन्होंने दलित बच्चों के अंतिम संस्कार के लिए कब्रिस्तान बनाने की बात मन में ठान ली।
इसके लिए उन्होंने अपने इस प्रस्ताव को अंग्रेजों के सामने रखा जिसे उन्होंने बिना किसी झिझक के मान लिया। उसके बाद से सभी हिन्दुओं की लाशें वहां लफनाए जानी लगी। साल 1932 में अच्युतानंद जी की मृत्यु के बाद उनके पार्थिव शारीर को भी इसी कब्रिस्तान में दफनाया गया था।