पूर्वाचंल में सपा को मिल सकता है पिछड़ों का लाभ
बेटे- बेटी को विधायक बनाने की चुनौती
लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी के कद्दावर नेताओं में शुमार किये जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने आज बसपा से अपना नाता तोड़ लिया। अब वह जहां भी नया ठिकाना बनायेंगे उस दल को मजबूत करने के साथ ही बसपा को कमजोर कर सकेंगे। क्योंकि बसपा मंे उन्होंने 25 साल तक सक्रिय राजनीति की है।
स्वामी प्रसाद मौर्या के सत्तारूढ समाजवादी पार्टी जाने की अटकले तेज हो गयी है। क्योंकि उनका बसपा से नाता तोडने के बाद सपा के प्रति नरम रूख अख्तियार किया। यह भी चर्चा है कि अखिलेश सरकार के आगामी 27 जून को होने वाले मंत्रिमण्डल विस्तार में स्वामी प्रसाद मौर्य को बडा विभाग दिया जा सकता है।
यदि यह चर्चा सही साबित हुई तो सपा मौर्या को पिछडों के बडे नेता के रूप में उभार कर चुनावी लाभ हासिल करने की कोशिश करेगी। क्योंकि सपा के पास करीब आठ प्रतिशत यादव जाति का वोट तो पहले से ही है । अब मौर्या के सहारे में प्रदेश में मौर्य, शक्य सहित अन्य पिछडी जातियों के करीब दस प्रतिशत वोट को आकशित कर सकेगी।
इसके अलावा सपा के मजबूत होने पर हर चुनाव में पडने वाला करीब 20 प्रतिशत फलोटिंग वोट भी सपा के साथ आ सकता है। क्योंकि सपा ने इन्हें पिछडी जाति बाहुल क्षेत्रों में सभाएं कर बसपा पर हमला बुलवायेगी। ऐसे में बसपा के साथ जुडने वाले दलित वोट बैंक में भी सपा सेंध लगाने मे कामयाब हो सकती है।
मौर्या का बसपा से नाता तोडने के बाद बसपा में जरूर खलबली मचेगी। वह जहां भी जायेंगे बसपा की अंदरूनी बातों को उजागर करेंगे। पार्टी सुप्रीमों मायावती के चाल चरित्र को जनता के बीच बताने का काम करेंगे।
इनके सपा में जाने से भाजपा का भी जातीय समीकरण गडबडायेगा। पार्टी ने पिछडों को लुभाने के लिए केशव प्रसाद मौर्या को प्रदेश अध्यक्ष बनाया हैं। वहीं पिछडों पर फोकस कर सपा भी राजनीति करती है। ऐसे में मौर्या के सपा के साथ आने पर भाजपा कमजोर होगी।
यह भी चर्चा है कि स्वामी प्रसाद मौर्या भाजपा नेताओं के भी सम्पर्क में है। उनकी प्रदेश अध्यक्ष केषव प्रसाद मौर्या सहित कई बडे नेताओं से मुलाकात भी हो चुकी है। ऐसे में यदि मौर्या भाजपा की ओर अपना रूख करते है तो सपा का जनाधार कमजोर होगा। क्योंकि भाजपा मौर्या के जरिये सपा के पिछडे वोट बेंक में सेंध लगाने में कामयाब होगी।
हालाकि स्वामी प्रसाद मौर्य स्वयं 2007 में बसपा की लहर के बावजूद चुनाव हार चुके हैं। वह पडरौना सीट से चार बार विधायक एवं प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके है। विपक्ष में रहने पर बसपा इ्रन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाती रही है।
बसपा के बडे नेताओं के रूप में इनकी गिनती की जाती है। इसके बावजूद 2012 में वह बसपा के टिकट पर अपने बेटे एवं बेटी को भी विधायक नहीं बना पाए। लेकिन इस बार वह उसी दल में जायेंगे जहां पर उनके साथ ही बेटे एवं बेटी को टिकट देने की गारंटी हो।