धर्मशास्त्रों में गौ माता की महिमा भरी पड़ी है। जिस व्यक्ति को ग्रह बाधा हो या ग्रहों की प्रीति नहीं हो पा रही हो, उस व्यक्ति को सरल, सहज व सुलभ तरीके से प्राप्त गौ माता की नित्य सेवा करनी चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र में तो एक राशि ‘वृष’ का वर्ग ही गौ है। इसी तरह जिन लोगों की जन्मपत्री में धनु या मीन लग्र हो, उन्हें या जिनकी पत्री में बृहस्पति की महादशा या अंतर व प्रत्यंतर दशा चल रही हो उन्हें अनिवार्य रूप से गौ माता के दर्शन करने चाहिएं।
बृहस्पति ग्रह के प्रसन्नार्थ रोज गाय को रोटी भी देनी चाहिए। यदि रोज संभव न हो सके तो प्रत्येक वीरवार को तो निश्चित रूप से गुड़ व रोटी गाय को खिलानी ही चाहिए।
इसी तरह जिन जातकों की मेष व वृश्चिक राशि है, उन्हें हरेक मंगलवार को गौ माता को गुड़ और रोटी देनी चाहिए। शास्त्रों में इतना लिखा है कि इस दिन जिस घर की महिलाएं गौ माता का पूजन करती हैं उस घर में माता लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है और अकाल मृत्यु कभी नहीं होती। भाद्रपद में द्वादशी को पडऩे वाले उत्सव को ‘वत्स द्वादशी’ या ‘बछ बारस’ कहते हैं।
पौराणिक आख्यान के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इसी दिन गौ माता का दर्शन-पूजन किया था। ‘रामायण’ में भगवान श्रीराम इस दिन स्वयं अपने छोटे भाइयों व परिजनों के साथ गौ माता का पूजन करते थे। वहां स्पष्ट लिखा है कि भगवान श्रीराम ने यज्ञ के बाद दस लाख गौएं ब्राह्मणों को दान में दी थीं।