लखनऊ। तोड फोड की राजनीति कर दिल्ली, बिहार एवं उत्राखण्ड में हार का स्वाद चख चुकी भारतीय जनता पार्टी सुधरने का नाम ही नहीं ले रही है। ऐसा ही प्रयोग एक बार फिर यूपी में धनकुबेर प्रीती महापात्रा को सांसद बनाने के लिए किया जा रहा है। लेकिन इस तरह की धनबल एवं बाहुबल की राजनीति भाजपा के लिए मिशन 2017 में भारी पड सकती है। ऐसे में भाजपा को यहां 265 प्लस का लक्ष्य भेदना कठिन हो सकता है।
नैतिकता का दुहाई देने वाली भाजपा के समक्ष करो या मरो की स्थित बन गयी है। क्योंकि पार्टी गुजरात की अरबपति प्रीती महापात्रा को यहां से राज्यसभा का निर्दल प्रत्याशी बना दिया है। इनके सहारे हार का स्वाद चख चुके दयाशंकर सिंह भी एमएलसी बनने के लिए जोर आजमाइश कर रहे है।
विधायकों का समर्थन हासिल करने के लिए हर तरह के हथकण्डे अपनाए जा रहे है। किसी को पैसे से तो किसी को टिकट देने का वादा करने के साथ तरह तरह के आफर देकर समर्थन हासिल करने की कोशिश की जा रही है। ऐसे में हमारे माननीयों को तय करना है कि वह क्या गुल खिलाते है। वहीं भाजपा छोड सभी दलों की परेशानी बढ गयी है, कि वह अपने विधायको को कैसे संतुष्ट करें जिससे वह क्रास वोटिंग न कर सके। बहरहाल भाजपा के लिए अतिरिक्त 29 विधायकों का समर्थन हालिस करना आसान नहीं होगा।
भाजपा के समक्ष करो या मरो की स्थित बनती जा रही है। यदि प्रीती को जिताने में पार्टी सफल हो जाती है तो उसे जोड तोड की राजनीति करने का विपक्ष का दंष झेलना पडेगा। यदि प्रीती हार जाती है तो भी पार्टी की बदनामी होगी। इसका असर मिषन 2017 पर पड सकता है।