लखनऊ। सूबे में करीब बीस प्रतिशत आबादी वाला मुस्लिम समाज को लेकर सभी राजनीतिक दल इकदम षांत है। साथ ही यह वोटर भी चुप बैठा हैं। अपनी आगामी रणनीति का खुलासा नही कर रहा हैं।
वहीं कुछ मुस्लिम धर्मगुरू सपा सरकार के कर्ताधर्ता अखिलेश यादव को 2012 में किये गए वादों को याद दिला रहे है। बहरहाल यदि इस वोट बैंक के बिखराव होने के आसार दिख रहे है। क्योंकि सपा, बसपा, कांग्रेस के साथ इस बार आवैसी एवं पीस पार्टी भी मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने का प्रयास कर रही है।
प्रदेश में करीब 20 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। 21 जनपदों में इनकी बर्चस्व ठीक ठाक है जो 130 विधानसभा क्षेत्रों की राजनीति को प्रभावित करने का दम रखते है। बीते कई दशक से यह वोट बैंक हर चुनाव में दल बदल देता है।
कभी सपा तो कभी बसपा के साथ खडा हो जाता है। लेकिन जिसके साथ जाता है उसकी सरकार बन जाती है। इस बार मुस्लिमों का गुस्सा सपा से बढता जा रहा है। क्योंकि सपा ने 2012 के चुनाव में अलग से आरक्षण देेने का वादा किया था। लेकिन यह वादा पूरा नहीं हुआ।
ऐसे में यह वोट बैंक बसपा के साथ जुड सकता है। वहीं इस वर्ग के लिए कांग्रेस, आम आदमी की पार्टी, ओवैषी की पार्टी तथा पीस पार्टी भी सेंध लगाने का प्रयास कर रही है।
ऐसे में इस वोट बैंक का बिखराव तय माना जा रहा है। जिसका लाभ भाजपा को मिलेगा। यदि यह वोट बेंक एकजुट रहता है तो इसका नुकसान भाजपा को होगा। जिस दल के साथ जुडेगा उसका लाभ होगा।